बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 राजनीति शास्त्र बीए सेमेस्टर-1 राजनीति शास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 राजनीति शास्त्र
1
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की उत्पत्ति एवं विकास
(Birth and Growth of IndianNational Movement)
प्रश्न- भारतीय राष्ट्रवाद के उद्भव और विकास के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
भारतीय राष्ट्रवाद के उद्भव और विकास के कारण
उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारतीय राष्ट्रीय परिदृश्य में राष्ट्रवाद का उदय हुआ जिसने आगे चल कर भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को जन्म दिया और भारत की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया। राष्ट्रवाद ऐसा नहीं है कि भारतवासियों के मन में स्वतः ही और अचानक ही घर कर गया हो। यह धीरे- धीरे भारतवासियों के हृदय में समाता गया. और उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में लार्ड लिटन की दमनकारी नीतियों के कारण अचानक ही फूट पड़ा और उग्र रूप धारण कर लिया। राष्ट्रवाद के उदय एवं विकास के लिए उत्तरदायी कारण निम्न बताये गये हैं-
1. ब्रिटिश शासन के दुष्परिणाम- ब्रिटिश शासन का दुष्परिणाम यह हुआ कि भारतीय जनता के हितों और अंग्रेजों के हितों के बीच टकराव होने लगा। भारत पर ब्रिटिश आधिपत्य का मुख्य उद्देश्य अपने हितों को साधना था। उन्होंने भारतवासियों के हितो का लेशमात्र भी ध्यान नहीं दिया। अतः भारतीय धीरे-धीरे वास्तविकता समझने लगे और विदेशी शासन की बुराइयों का उन्हें आभास हो गया। अब भारतीय यह अच्छी तरह समझ गये थे कि ब्रिटिश शासन भारत के भावी आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक और राजनीतिक विकास में मुख्य अवरोध बन गया है। भारत का प्रत्येक वर्ग और प्रत्येक श्रेणी ब्रिटिश) शासन के प्रति सशंकित हो गया था। किसानों से सरकार उपज का एक बड़ा हिस्सा भू-राजस्व के रूप मं ले लेती थी और उसके कर्मचारी किसानो का शोषण करवाते थे और जमींदारों और महाजनों का ही पक्ष लेते थे। जमींदारो तथा महाजनों के विरुद्ध वे जब कभी आवाज उठाते, तो पुलिस कानून एवं व्यवस्था के नाम पर उनका दमन कर देती थी। हस्तशिल्पी और दस्तकार भी ब्रिटिश नीति के शिकार थे। उन्हें भी, ब्रिटिश व्यापारियों के हितों के आगे बलि का बकरा बना दिया गया था। ब्रिटिश मालिकों की फैक्ट्रियों में मजदूरों के साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया जाता था। लेकिन सरकार के द्वारा मजदूरों के हितों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता अगर दिया भी जाता तो केवल नाममात्र का।
किसान, मजदूर और दस्तकार जो बहुमत में थे, की स्थिति शोचनीय थी। उनके पास न तो कोई राजनीतिक अधिकार था और न ही उनके सामाजिक एवं सांस्कृतिक उत्थान हेतु कोई प्रयास किया गया था। शिक्षा की उनके लिए सरकार द्वारा उचित एव पर्याप्त व्यवस्था नहीं की गई थी। इससे यह बड़ा वर्ग आर्थिक एवं सामाजिक शोषण के साथ-साथ कूप मंडूप भी बन गया। शिक्षित भारतीयों ने वस्तुस्थिति को भलीभाँति समझा और निष्कर्ष निकाला कि ब्रिटेन भारत को अपना एक आर्थिक उपनिवेश बना रहा है अतः भारतीय अर्थव्यवस्था पर जब तक साम्राज्यवादी नियंत्रण बना रहेगा तब तक भारत का विकास कर पाना असम्भव है। राजनीतिक दृष्टि से भी भारत का विद्वान वर्ग काफी सशंकित था। अंग्रेज भारत को गुलाम बनाये रखना चाहते थे। कई अंग्रेज अधिकारियों और गवर्नर जनरलो ने इस बात की खुलेआम घोषणा कर दी थी कि हम यहाँ स्थायी रूप से शासन करने आये हैं। अंग्रेजों ने भारतीयों को राजनीति से पृथक रखने के लिए हर सम्भव प्रतिबन्ध लगाये और सदैव भारतीयों को राजनीतिक में अयोग्य घोषित करने का प्रयास किया। शिक्षित बेरोजगारों की संख्या दिन व दिन बढ़ती जा रही थी और जिन्हें रोजगार मिला भी था वह उनकी योग्यता से काफी कम था क्योंकि अंग्रेज अच्छी नौकरियाँ अंग्रेजों के लिए सुरक्षित रखते थे। अतः शिक्षित वर्ग समझ गया था कि ब्रिटिश राज्य में अच्छी नौकरी पाना और सम्मानजनक जीवन व्यतीत करना संभव नहीं है। अतः वे स्वराज्य प्राप्त करने के मार्ग पर अग्रसर होने लगे।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि ब्रिटिश शासन के चरित्र तथा उसके भारतीय जनता पर पडने वाले दुष्परिणामों के फलस्वरूप ही राष्ट्रीयता की भावना का उदय हुआ और एक शक्तिशाली साम्राज्यवादी विरोधी आन्दोलन का भारत में विकास हुआ।
2. ब्रिटिश आर्थिक नीतियाँ - भारत पर ब्रिटिश शासन का एक लाभ यह हुआ कि सम्पूर्ण भारत एक प्रशासनिक तंत्र के अन्तर्गत आ गया और उसका राजनीतिक एकीकरण हुआ। अंग्रेजों ने सम्पूर्ण भारत में एक समान आधुनिक शासन-प्रणाली लागू की और प्रशासनिक रूप से एक सूत्रबद्ध किया। ब्रिटिश आर्थिक नीतियों के कारण सम्पूर्ण भारत के किसानों, मजदूरों और दस्तकारों का एक समान शोषण हुआ और आधुनिक व्यापार उद्योगों का एक समान विकास हुआ तथा सभी की समस्यायें एक समान हुईं। अतः आर्थिक जीवन एक सूत्रबद्ध हो गया और देश के विभिन्न भागों में रहने वालों की आर्थिक नीति परस्पर सम्बद्ध हो गई। अंग्रेजों की आर्थिक नीतियाँ इस प्रकार की थीं कि देश के किसी भाग की आर्थिक विपदा का प्रभाव समस्त देश पर पड़ता था। अगर देश के किसी भी भाग में अकाल पडता तो देश के अन्य भाग प्रभावित होते थे, कीमतें सम्पूर्ण देश में बढ़ जाती। अत सभी भारतवासियों का आर्थिक रूप से एक सूत्रबद्ध हो जाना लाजमी था। सचार माध्यम, रेलवे, टेलीग्राफ और डाक व्यवस्था की स्थापना से भी देश एक सूत्रबद्ध हो गया और एक स्थान की समस्याओं से दूसरे स्थान के लोग शीघ्र ही अवगत होने लगे, ताओं के बीच विचार-विमर्श होने लगे, पत्रों का आदान-प्रदान होने लगा जिससे राष्ट्रवाद की भावना उजागर होने लगी।
3. पश्चिम दर्शन एवं शिक्षा - अंग्रेजों के आगमन के साथ ही उन्नीसवी शताब्दी में आधुनिक पाश्चात्य शिक्षा और चिन्तन के प्रसार से भारतीयों के दृष्टिकोण में काफी अन्तर आया। भारतवासियों ने आधुनिक, धर्मनिरपेक्ष, प्रजातांत्रिक और राष्ट्रीय राजनीतिक दृष्टिकोण ग्रहण कर लिया। भारतीयों ने पाश्चात्य शिक्षा से पश्चिम के इतिहास और दर्शन की जानकारी हासिल की। यूरोपीय राष्ट्रीय आन्दोलनों और अमरीकी स्वतन्त्रता संग्राम का उन पर व्यापक असर हुआ। रूसो, पेन, जॉन स्टुअर्ट, मिल और अन्य पाश्चात्य दार्शनिकों की जीवनियों ने भारतीय चिंतकों एवं नेताओं को प्रभावित किया। ये दार्शनिक उनके मार्गदर्शक बन गये। भारतीय युवाओं ने मेजिनी, गैरीबाल्डी आदि नायकों का अनुसरण किया जिसके फलस्वरूप अनेक गुप्त संगठनो का निर्माण होने लगा। अब भारतीय विदेशी शासन में स्वयं को अपमानित महसूस करने लगे थे। वे पूर्णतः विदेशी शासन के दुष्परिणामों से अवगत हो गये थे।
भारतीय नेताओं का दार्शनिक चिंतन अब पूर्णतः राजनीति से प्रेरित हो गया था। यद्यपि सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में विद्यार्थियों को ब्रिटिश शासन के प्रति प्रेम, समर्पण और स्वामिभक्ति की भावना भरी जाती थी लेकिन आधुनिक विचारों के प्रचार ने सरकारी विद्यालयों को अपने प्रयत्नों में सफल होने से रोक दिया। अंग्रेजों ने अंग्रेजी भाषा को सम्पूर्ण भारत में शिक्षा का माध्यम बनाया। इससे शिक्षित भारतीयों के बीच विचारों के आदान-प्रदान में सुविधा हुई, अब भाषा की समस्या नहीं रह गई। अंग्रेजी भाषा से भारतीय समाज को एक नुकसान अवश्य हुआ कि भारतीय अशिक्षित वर्ग विशेषकर किसान वर्ग, शिक्षित वर्ग से स्पष्टत अलग हो गया। इस तथ्य को शीघ्र ही भारतीय नेताओं द्वारा समझ लिया गया तथा उन्होंने जनसाधारण में विचारों का प्रचार करने के लिए भारतीय भाषाओ को माध्यम बनाया और उनका विकास किया।
4. साहित्य और समाचार पत्रों की भूमिका - अखिल भारतीय चेतना और राष्ट्रीयता की भावना का अलख जगाने में साहित्य एवं समाचार पत्रों की अहम भूमिका रही। अठारहवी सदी के अंत से ही समाचार पत्रों का प्रकाशन शुरू हो गया और उन्नीसवीं शताब्दी में तो बाढ़ सी आ गई। पत्रों एवं पत्रिकाओं सरकार की नीतियों को उजागर किया जाने लगा और उनकी आलोचना और समीक्षा की जाने लगी। भारतीय जनता को अंग्रेजों के दृष्टिकोण से अवगत कराया गया और जनता से आग्रह किया गया कि वह राष्ट्र के कल्याण के लिए सोचें और एकजुट होकर काम करें। समाचार पत्रों ने आधुनिक राजनीतिक वेिचारों, स्वशासन, प्रजातंत्र और औद्योगीकरण को प्रचारित किया। उस समय के महत्वपूर्ण समाचार पत्रो जैसे अमृत बाजार पत्रिका बंगाली, संजीवनी, हिन्दू पैट्रियाट, इण्डियन मिरर, सोम प्रकाश रस्त गोफ्तार, नेटिव ओपिनियन एडवोकेट, हिन्दुस्तानी, आजाद केसरी, मराठा, ट्रिब्यून आदि ने भारतीय जनमानस के मस्तिष्क पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। बंगला भाषा के रवीन्द्रनाथ टैगोर बकिमचन्द्र चटर्जी, मराठी भाषा के विष्णुशास्त्री चिपलुकर, असमिया भाषा के लक्ष्मीकात बेज बरुआ, हिन्दी भाषा के भारतेन्दु हरिश्चन्द्र तमिल भाषा के सुब्रह्मण्यम भारती ने राष्ट्रीय साहित्य रचना में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया और राष्ट्रीय आन्दोलन को नये आयाम देकर जनमानस में राष्ट्रवाद की भावना के उदय में महती भूमिका निभायी।
5. भारतीयों में अपनी प्राचीन संस्कृति के प्रति आकर्षण - ब्रिटिश लेखकों और ईसाई हुआ है तथा ये मिशनरियो ने यह दावा किया कि भारतीयों का धार्मिक और सामाजिक जीवन काफी गिरा असभ्य और जंगली है। वर्तमान की बात तो अलग अतीत में भी वे शासन करने योग्य नहीं रहे। सदैव ही विदेशियों ने उन पर शासन किया। यहाँ के हिन्दू और मुसलमान कभी एक नहीं रहे और सदैव ही आपस में लड़ते-झगड़ते रहे। उन्होंने इस बात का प्रचार किया कि भारत सदैव से विदेशियों का ऋणी रहा है। उसका अपना कुछ भी नहीं और भारतीयों के मन में यह भावना भरने की चेष्टा की कि वे शासन करने योग्य हैं ही नहीं। विदेशी शासन में उनका हित है। लेकिन ऐतिहासिक खोजों, अन्वेषणों और पुरातात्विक खोजों से भारतीय इतिहास को नई दिशा मिली। कुछ ऐतिहासिक लेखकों, मैक्समूलर, विलियम्स, रुथ आदि ने वैभवपूर्ण सांस्कृतिक विरासत को नये आयाम दिये। पुरातात्विक खोजों ने भारत के अतीत का गौरवशाली चित्रांकन किया। मैक्समूलर और अन्य विद्वानों ने मुक्त कठ से वेदों और उपनिषदों की प्रशंसा की और उन्हें विश्व के प्राचीनतम ग्रंथों में से एक बताया। साथ ही साथ यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि भारतीय आर्यों की उत्पत्ति वहीं से हुई जहाँ से यूरोपीय जन समुदाय की। इन सभी ने मनोवैज्ञानिक रूप से शिक्षित भारतीयों को प्रभावित किया। इसके अतिरिक्त अनेक राष्ट्रवादी नेताओं ने इस प्रचार का खण्डन कर जनता में आत्मविश्वास तथा आत्मसम्मान की भावना का संचार करने का प्रयास किया। राष्ट्रवादी नेताओं ने चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, शेरशाह, अकबर, राणा प्रताप, हर्ष, शिवाजी आदि भारतीय शासकों की उपलब्धियों की ओर आलोचकों का ध्यान आकर्षित किया और उनके मुँह बन्द किये। विद्वानों ने प्राचीन भारतीय कला, वास्तुशिल्प, साहित्य, दर्शन, विज्ञान और राजनीति को खोज निकाला और भारतीयों को अपने अतीत पर गौरवान्वित होने पर बल देकर राष्ट्रवाद की भावना उजागर करने में भरपूर सहयोग दिया।
6. जातीय अहंकार और भारतीय के प्रति उनका दृष्टिकोण - राष्ट्रीयता की भावना की उत्पत्ति का एक अन्य कारण अंग्रेजो का जातीय अहंकार और उनके द्वारा अपनाया गया जातीय श्रेष्ठता का भाव था। अग्रेज भारतवासियों को अपमानित करने और उन पर प्रहार करने में जरा भी नही चूकते थे। व्यवहार में ही नहीं न्यायालय में भी अंग्रेजों का जातीय श्रेष्ठता का भाव और जातीय अहंकार स्पष्ट रूप से दिखाई देता था। जब कभी किसी अंग्रेज का किसी भारतीय से झगडा होता तो न्यायालय सदैव अंग्रेज का ही पक्ष लेता था। अपराध चाहे किसी का भी हो। अंग्रेज बड़ा से बड़ा अपराध करके भी अत्यधिक मामूली दण्ड भुगतकर या जुर्माना भरकर अधिकांशतः छूट जाया करते थे जबकि भारतीयों को छोटे से छोटे अपराध के लिए भयंकर यातनाओं को भुगतना पड़ता था। अंग्रेजों का मानना था कि एक अंग्रेज की गवाही असंख्य भारतीयों की गवाही से भारी पडेगा। अग्रेज भारतीयों के साथ अभद्रतापूर्ण व्यवहार करते थे। यूरोपीय रेस्तरा और क्लबों में भारतीय प्रवेश नहीं कर सकते थे। इनके दरवाजों पर लिखा होता था कि Indians and dogs are not allowed. रेलगाड़ियों तथा सडकों पर भारतीय उनके साथ यात्रा नहीं कर सकते थे। भारतीयों को दैनिक जीवन में रोजमर्रा अपमान के घूँट पीकर रह जाना पड़ता था। इसके अतिरिक्त लार्ड लिटन की प्रतिबुद्धिवादी नीति एवं भेदभावपूर्ण रवैये से तंग आकर भारतीयों में अंग्रेजों से मुकाबला करने के लिए एकजुट होने लगे तथा उनमें राष्ट्रवाद की तीव्र भावना उभरने लगी।
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- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रवाद के उद्भव और विकास के कारणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय आन्दोलन में कांग्रेस के उदारवादी चरण की विचारधारा, कार्यपद्धति, माँगें, सीमाओं के आलोक में मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के जन्म के संदर्भ पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काँग्रेस में उग्रवादी विचारधारा के उद्भव के क्या कारण थे?
- प्रश्न- भारत में राष्ट्रवाद के उदय के तात्कालिक कारण क्या थे?
- प्रश्न- बंगाल विभाजन के निहितार्थ स्पष्ट करते हुए स्वदेशी आन्दोलन का वर्णन कीजिए
- प्रश्न- कांग्रेस के पूर्ववर्ती संगठनों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- उदार राष्ट्रवादियों की विचारधारा एवं कार्यपद्धति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय उदारवादियों के योगदान पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- उग्रवादी राष्ट्रीय आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? इसके विकास के समय की राजनीतिक परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सन् 1909 ई. अधिनियम पारित होने के कारण बताइये।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, (1909 ई.) के प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- जलियाँवाला हत्याकांड की घटना तथा उसके प्रभाव की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- खिलाफत आन्दोलन से क्या अभिप्राय है? खिलाफत आन्दोलन के उदय एवं विकास की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- असहयोग आन्दोलन के प्रारम्भ होने प्रमुख कारणों की सविस्तार विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- असहयोग आन्दोलन की असफलता के कारणों पर प्रकाश डालते हुए इसके महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- असहयोग आंदोलन के सिद्धांतों एवं कार्यक्रमों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वैध शासन प्रणाली से आप क्या समझते हैं? इसकी असफलता के क्या कारण थे?
- प्रश्न- 'सविनय अवज्ञा' का अभिप्राय स्पष्ट करते हुए सविनय अवज्ञा आन्दोलन के प्रमुख कारणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रारम्भ कब और किस प्रकार हुआ सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कार्यक्रम पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड' पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रौलेक्ट एक्ट क्या था?
- प्रश्न- महात्मा गाँधी द्वारा 'खिलाफत' जैसे धार्मिक आन्दोलन का समर्थन किन आधारों पर किया गया था?
- प्रश्न- असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रमों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- असहयोग आन्दोलन के सिद्धान्त, कार्यक्रमों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- माण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (1919 ई.) के प्रमुख गुणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' के विषय में आप क्या जानते हैं? इसे आरम्भ करने के क्या कारण थे?
- प्रश्न- गाँधी-इरविन समझौता क्या था?
- प्रश्न- संविधान सभा का निर्माण किस प्रकार किया गया स्पष्ट कीजिए तथा अपने कार्य निष्पादन में इसे किन बाधाओं का सामना करना पड़ा?
- प्रश्न- भारतीय संविधान सभा की अवधारणा का विकास किस प्रकार हुआ, वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान से आप क्या समझते हैं? भारतीय संविधान के विभिन्न स्रोतों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के निर्माण की अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान सभा के प्रकृति स्वरूप की चर्चा करते हुए यह भी स्पष्ट कीजिए कि क्या इसे 'वकीलों का स्वर्ग' कहा जा सकता है?
- प्रश्न- क्या आप इस विचार से सहमत हैं कि भारतीय संविधान 1935 के भारत शासन अधिनियम का वृहत् संस्करण है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संविधान की परिभाषा दीजिए। संविधान के मुख्य प्रकारों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान सभा के प्रमुख सदस्यों की कार्यप्रणाली के विषय में बताइए तथा संविधान निर्माण की विभिन्न समितियाँ कौन-सी थी?
- प्रश्न- संविधान सभा द्वारा संविधान के लिए उद्देश्य प्रस्ताव क्या था? संविधान निर्माताओं के सामने संविधान निर्माण में क्या-क्या समस्याएँ थीं?
- प्रश्न- लिखित व निर्मित संविधान से अभिप्राय बताइए।
- प्रश्न- संविधान सभा को कार्य निष्पादन में किन बाधाओं का सामना करना पड़ा?
- प्रश्न- संविधान सभा के कार्यकरण की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- नेहरू रिपोर्ट (1928) की प्रमुख सिफारिशें क्या थीं?
- प्रश्न- पं. नेहरू द्वारा प्रस्तुत उद्देश्य प्रस्ताव (1946) के महत्वपूर्ण प्रस्ताव क्या थे?
- प्रश्न- भारतीय संविधान की मौलिकता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम 1935 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'प्रारूप समिति' पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- नेहरू रिपोर्ट- 1928 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की प्रस्तावना की भूमिका से क्या आशय है? भारतीय संविधान की प्रस्तावना उद्देश्य तथा महत्व बताइये।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की प्रस्तावना के स्वरूप की विश्लेषणात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए
- प्रश्न- 73 वें संविधान संशोधन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- संविधान की प्रकृति से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- भारतीय संविधान की विशालता के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- भारतीय संविधान में केन्द्र को शक्तिशाली क्यों बनाया गया?
- प्रश्न- भारतीय संविधान में संशोधन प्रक्रिया का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान की प्रस्तावना का क्या महत्व है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की मूल प्रस्तावना को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संवैधानिक उपचारों का अधिकार पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- बयालिसवें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान की मूल प्रस्तावना में किये गये सुधारों को बताइये।
- प्रश्न- एकल नागरिकता क्या है?
- प्रश्न- 'लोक कल्याणकारी राज्य' पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के नागरिकता सम्बन्धी प्रावधानों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत में किसी भी व्यक्ति की नागरिकता किन आधारों पर समाप्त हो सकती है?
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों का महत्व तथा अर्थ बताइये। मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के अधिकार पत्र की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मानव अधिकारों की रक्षा के लिए किये गये विशेष प्रयत्न इस दिशा में कितने कारगर हैं? विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक कर्तव्य कौन-कौन से हैं? इनके महत्व पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्तव्यों की प्रकृति तथा उनके महत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं नीति-निदेशक तत्वों में अन्तर बतलाइये।
- प्रश्न- विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सम्पत्ति के अधिकार पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- निवारक निरोध' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- क्या मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है?
- प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं मानव अधिकारों में अन्तर लिखिए।
- प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्यों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- नीति निर्देशक तत्वों से आप क्या समझते हैं? संविधान में इनके उद्देश्य एवं महत्व का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान में वर्णित नीति निर्देशक सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों तथा नीति निर्देशक सिद्धान्तों में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीति निर्देशक तत्वों के क्रियान्वयन की आलोचनात्मक व्याख्या अपने शब्दों में कीजिए।
- प्रश्न- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्त के स्वरूप और क्षेत्र का वर्णन कीजिये। भारतीयराजनीतिक व्यवस्था में सुधार के लिए यह किस प्रकार उपयोगी है?
- प्रश्न- नीति-निदेशक तत्वों का अर्थ बताइए।
- प्रश्न- हमारे देश में नीति निर्देशक तत्वों का कार्यान्वयन कहाँ तक हुआ है, स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राज्य के उन नीति निर्देशक तत्वों का उल्लेख कीजिये जिन्हें गांधीवाद कहा जाता है।
- प्रश्न- नीति निर्देशक तत्वों की प्रकृति अथवा स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीति निर्देशक सिद्धान्तों का महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में संविधान संशोधन (Constitutional Amendment) की क्या प्रक्रिया अपनाई गई है? विस्तारपूर्वक समझाइए।
- प्रश्न- भारतीय संसद की संविधान संशोधन की शक्ति के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- अनुच्छेद 356 चौवालीसवें संविधान संशोधन विधेयक पर संक्षिप्त टिप्पणी करें।
- प्रश्न- राष्ट्रपति पद की योग्यतायें एवं कार्यकाल बताते हुए इस पद की संवैधानिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रपति की चुनाव प्रक्रिया को समझाइये, उसे अपने पद से कैसे हटाया जा सकता है तथा राष्ट्रपति के पद रिक्तता की स्थिति में उसके कार्यों को कैसे सम्पादित किया जाता है?
- प्रश्न- भारत के राष्ट्रपति की स्थिति के सम्बन्ध में संवैधानिक प्रधान की धारणा का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- प्रधानमन्त्री की स्थिति उसका महत्व तथा उसकी भूमिका की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संघ में प्रधानमन्त्री की नियुक्ति किस प्रकार होती है? शासन में उसका क्या महत्व है?
- प्रश्न- भारत में मंत्रिपरिषद के गठन, कार्य व शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में मंत्रिमंडलीय प्रणाली की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- उपराष्ट्रपति पद की योग्यतायें, कार्यकाल तथा निर्वाचन पद्धति बताइये।
- प्रश्न- उपराष्ट्रपति के कार्य एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाने की प्रक्रिया का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत के राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्या भारतीय राष्ट्रपति 'रबर स्टैम्प' है? पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्ति (Veto Power) का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अनुच्छेद 352 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अनुच्छेद 356 पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री की विशिष्ट स्थिति पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के सम्बन्धों पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- भारत में प्रधानमन्त्री के प्रभुत्व से वृद्धि के कारणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- प्रधानमंत्री वास्तविक कार्यपालक के रूप में टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रधानमन्त्री और संसद पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मंत्रिपरिषद में प्रधानमन्त्री की स्थिति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मंत्रिपरिषद के सामूहिक उत्तरदायित्व पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय संसद की संरचना का संक्षेप में वर्णन कीजिए। संसद के कार्य एवं शक्तियाँ बताइये।
- प्रश्न- राज्य सभा की संरचना, कार्य एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लोकसभा की संरचना एवं लोकसभा का कार्यकाल बताते हुए इसके कार्य एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लोकसभा की शक्तियों एवं स्थिति का विश्लेषण कीजिए
- प्रश्न- भारतीय लोकसभा अध्यक्ष की स्थिति, शक्तियों तथा कार्यों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- संसद में कानून निर्माण प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संसद सदस्यों के विशेषाधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- लोकसभा अध्यक्ष के कार्य एवं अधिकार संक्षेप में बतायें।
- प्रश्न- राज्य सभा के पदाधिकारियों के विषय में बताइए।
- प्रश्न- वित्त विधेयक के सम्बन्ध में लोकसभा के क्या विशेषाधिकार हैं?
- प्रश्न- धन विधेयक एवं वित्त विधेयक के मध्य भेद स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संसदीय व्यवस्था की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतीय संसद में विपक्ष की भूमिका टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल की नियुक्ति एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल की स्वविवेकीय कार्यों एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्रीय सरकार के प्रतिनिधि के रूप में राज्यपाल की भूमिका अथवा स्थिति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मुख्यमन्त्री की नियुक्ति किस प्रकार होती है? उसकी राज्य के शासन में क्या भूमिका और स्थिति है?
- प्रश्न- मुख्यमन्त्री की नियुक्ति, उसके अधिकार एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए एवं मन्त्रिपरिषद एवं विधानसभा के सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल, मंत्रिपरिषद तथा मुख्यमंत्री के आपसी सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल की स्वविवेकी शक्तियों पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'केन्द्रीय अभिकर्ता' के रूप में राज्यपाल की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- राज्यपाल का निर्वाचन क्यों नहीं होता? संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- संविधान के अनुच्छेद 356 के संदर्भ में राज्य के राज्यपाल की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- मुख्यमन्त्री / मन्त्री पद की पात्रता सम्बन्धी सर्वोच्च न्यायालय के 10 सितम्बर, 2000 के निर्णय की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'मुख्यमंत्री चयन की राजनीति टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- विधानसभा की रचना तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- विधान परिषद की रचना किस प्रकार होती है? उसके कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना और गठन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक समीक्षा के अधिकार का वर्णन कीजिए तथा इसका महत्व समझाइये।
- प्रश्न- सर्वोच्च न्यायालय की आवश्यकता एवं महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सर्वोच्च न्यायालय के संगठन, शक्तियों और कार्यों की विवेचना कीजिए। इसे भारतीय संविधान का संरक्षक क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- उच्च न्यायालय के गठन एवं न्यायाधीशों की नियुक्ति, कार्यकाल,शपथ एवं स्थानान्तरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार या शक्तियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों के रक्षक के रूप में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- 'सामाजिक न्याय' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- न्याय पुनः निरीक्षण की शक्ति तथा उच्च न्यायालयों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में केन्द्र राज्य सम्बन्धों की स्पष्ट व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में केन्द्र राज्य सम्बन्धों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्र तथा राज्यों के बीच सम्बन्धों के सुधार के लिए आप किन उपायों को आवश्यक समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राज्य स्वायत्तता (Autonomy) से आप क्या समझते हैं? संक्षेप में टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- 'सहकारी संघवाद' (Co-operative Federalism) पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय परिषदों की स्थापना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वित्त आयोग के गठन पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय विकास परिषद के गठन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- संविधान की 5वीं एवं 6ठी अनुसूची किन क्षेत्रों को विशेष दर्जा प्रदान करती है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संविधान की छठी अनुसूची किन क्षेत्रों से सम्बन्धित विशेष प्रावधान करती है?
- प्रश्न- संविधान में आदिवासी क्षेत्रों के लिये विशेष प्रावधान क्यों रखे गये? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत और उत्तर-पूर्व के राज्यों को लागू इनर-लाइन परमिट क्या है?
- प्रश्न- भारत में निर्वाचन आयोग के संगठन एवं कार्यों अथवा शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को दूर करने के सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- क्या निर्वाचन आयोग एक निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र संस्था है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मतदान व्यवहार क्या है? मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्वों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- निर्वाचन विषयक आधारभूत सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मुख्य निर्वाचन आयुक्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
- प्रश्न- चुनाव सुधारों में बाधाओं पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्व बताइये।
- प्रश्न- चुनाव सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।